विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 66 में से 63 प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। यह पहला ऐसा मौका है जब एक राष्ट्रीय पार्टी की करीब 95 फीसदी सीटों पर जमानत जब्त हुई है। चुनाव परिणाम ने न केवल दिल्ली की राजनीति में नया अध्याय लिख दिया है, बल्कि अगले किसी भी चुनाव के मैदान में उतरने से पहले कांग्रेस को सभी पहलुओं पर गंभीरता से सोचना होगा।
हैरानी की बात ये है कि इस बार कांग्रेस के सात-आठ नेताओं के रिश्तेदार मैदान में उतरे थे, जिनके समर्थन में बड़े-बड़े स्टार प्रचारक भी फायदेमंद साबित नहीं हुए। सीएए और एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस ने समर्थन हासिल करने की कोशिश की, लेकिन फायदे की बजाय पार्टी को इसका नुकसान ही पहुंचा।
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की पुत्री शिवानी चोपड़ा, चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम आजाद, पूर्व मंत्री योगानंद शास्त्री की पुत्री प्रियंका सिंह, मॉडल टाउन के पूर्व विधायक कुंवर करण सिंह की बेटी आकांक्षा ओला, पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह के पुत्र अरविंदर सिंह लवली, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामबाबू शर्मा के बेटे विपिन शर्मा, पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे मिर्जा जावेद अली सहित कई और नेताओं के रिश्तेदार चुनावी मैदान में थे।
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन किया था, लेकिन चुनाव में कांग्रेस के 66 में 63 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई, जबकि राजद प्रत्याशियों को भी जमानत बचाने का मौका नहीं मिल सका।
बिहार चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने दिल्ली में पहली बार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन आरजेडी प्रत्याशियों को भी सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा और उनकी जमानत भी जब्त हुई। आरजेडी के वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव में जान फूंकने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस फिर भी नहीं संभल पाई। माना जा रहा है कि गठबंधन के बाद आरजेडी की हुई किरकिरी के बाद इसे आगे भी बरकरार रखने के लिए दोनों पार्टियों के नेता नए सिरे से मंथन करेंगे।